पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१२९

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X ११८ तुलसी की जीवन-भूमि बाजार रुचिर बनाइ बरनत, वस्तु किन : गय पाइए ।

जह भूप रमानिवास तहँ की संपदा किमि गाइए ।

बैठे बजाज, सराफ, बनिक, अनेफ़ मनहुँ कुवेर ते । सब सुखी सब सच्चरित सुंदर नारि नर ,सिसु जरठ जे। उत्तर दिसि सरजू ब्रह, निर्मल जल गंभीर ।

बाँधे घाट मनोहर, स्वल्प पंफ नहिं .तीर ।

दूरि फराक रुचिर वर घाटा, जहँ जल पियहिं बाजि गन ठाटा । पनिवट परम मनोहर नाना, तहाँ न पुरुष करहिं असमाना । X तीर तीर तुलसिका सुहाई | बंद धुंद बहु मुनिन्ह लगाई। इंस सांकेतिक वर्णन में अपने इष्टदेव की जन्मभूमि-वर्णन के साथ ही साथ कवि ने अपनी जन्मभूमि की भोर संकेत कर दिया है, क्योंकि भक्त कवि प्रायः अपने इष्टदेव के साथ अपनी स्थिति का भी लक्ष्य करा देते हैं । यह वात 'मानस-प्रसंग' से भी स्पष्ट है, जहाँ कवि अपने इष्टदेव का स्वागत करने के लिए जमुना पार उत्तरने पर ठीक उसी स्थान में जहाँ उसकी जन्मभूमि थी, अर्थात् राजापुर जिला घाँदा में तापस' के रूप में प्रकट हो जाता है, और अपने इष्टदेव को वहाँ विश्राम करा कर उसके शाही-स्वागत का आयोजन करता है। अस्तु 'अयोध्या-वर्णन' के इस सांकेतिक वर्णन से यही व्यजित होता है कि कवि की जन्मभूमि ( राजापुर ) के उत्तर में सरय् ( यमुना-सांकेतिक अर्थ) नदी बहती है, नदी का जल निर्मलं एवं गंभीर है तथा किनारे में तनिक भी कीचड़ नहीं है । कि बहुना ? संक्षेप में- उपरोक सभी बातें संकेत रूप में राजापुर का विशद वर्णन करती .