पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३०

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तुलंसी का जन्मस्थान: हैं और इस मानस-सम्मत समस्त वर्णन का राजापुर में प्रत्यक्ष दर्शन होता है। वही पृष्ठ, ५१-५२] क्यों न हो ? वही तुलसी का नित्यधाम जो है परंतु ? परंतु राजापुर की लीला का मुँह खुला नहीं कि राजापुर की सारी । लीला आप ही प्रकट हो गई। वचन स्वयं गोस्वामीजी की ही है। लीजिए---.. राम' कीन्ह विश्राम निसि प्रात प्रयाग नहाइ । चले सहित सिय लखन जन मुदित मुनिहि सिक नाइ ॥१०॥ राम सप्रेम कहेउं मुनि पाही | नाथ कहिम हम केहि मग जाही। मुनि मन विहसि राम सन कहहीं । सुगम सफल मग तुम्ह फहँ अहहीं। साथ लागि मुनि सिष्य बुलाए । सुनि मन मुदित पचासक आए। संबन्हि राम पर प्रेम 'अपारा । सफल कहहिं मगु दीख हमारा । सुनि बटु चारि संग तब दीन्हे । जिन्ह बहु जनम सुक्कत सब कीन्हे । फरि प्रनामु रिषि आयेसु पाई.1 प्रमुदित हृदय चले रघुराई । ग्राम निकट निकसहिं जब जाई । देखहि दरसु 'भारि नर धाई। होहिं सनाथ जनम फलु पाई। फिरहिं दुखित मनु संग पठाई । विदा किए बहु बिनय करि फिरे पाइ मन काम | उतरि नहाए नमुन जल जो सरीर सम स्याम ||१०६॥ सुनत तीर. बासी नर नारी | धाएं निज निज काज विसारी। लखन . राम सिय सुंदरताई । देखि करहिं निज भाग्य बढ़ाई ! अति लालसा वसहिं मन माहीं । नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं ! जे तिन्ह महुँ बय निरिध सयाने । तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने । सफल कथा तिन्ह सबहि सुनाई । बनहिं चले पितु आयसु पाई। सुनि सविषाद सफल पछिताहीं । रानी राय कीन्हि भल नाहीं । .