पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी का जन्मस्थान १२१ किन्तु यहाँ विना धन का पता पाए ही चलता चना | क्यों ? कारण हमारी समझ में तापस' का आना ही है। तापस का पता फिर नहीं रहा तो न.रहे, किंतु यह समझ रखना चाहिए कि वह सदा साथ रहा अपने इष्टदेव के ही। वाल्मीकि का शिष्य तुलसी जो है। 'मानस' के टीकाकारों तथा तुलसी के विवेचकों के सामने सदा से यह प्रश्न रहा है कि वास्तव में इस तापस' का रहस्य क्या है। 'तापस का प्रसंग' क्षेपक है तो रहे पर इससे तापंस का रहस्यं उसको जानने की जिज्ञासा का लोप कैसे हो सकता है.? फलतः उसकी उहापोह भी बरा- वर होती रहती है । इस जन का सदा से विचार रहा है कि वास्तव में तुलसीदास ने अपने आप को ही 'एक तापस' के रूप में अंकित किया है। किंतु अब इसका विचार रंचक भी यह नहीं रहा कि इस प्रसंग का कारण है राजापुर तुलसी का जन्मस्थान होना । कारण है यह कि यह किसी प्रकार सिद्ध नहीं हो सकता कि राम ने राजापुर के सामने जाकर यमुना को पार किया और पार कर पुरवासियों का सुख भोगा । ध्यान देने की बात यहाँ यह है कि यदि राम' को राजापुर जाकर चित्रकूट जाना इष्ट होता तो प्रयाग से सीधे जल. मार्ग से प्रस्थान करते और सखा निषाद की सहायता से बड़ी सरलता से वहाँ पहुँच जाते । परंतु उन्होंने किया इसके विपरीत हो । कारण कुछ तो होगा ही। भूलिए नहीं । प्रयाग में भरद्वाज मुनि ने राम से प्रश्न किया था- नाथ! कहिब हम केहि मग जाही? उत्तर में 'मुनि ने कहने को कह तो दिया- सुगम सफल मग. तुम्ह कहुँ महहीं।