पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३३

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१२२ तुलसी की.जीवन-भूमि किंतु करने को किया यह नुनि . बटु · चारि संग तब दीन्हे। घटु कितनी दूर तक राम के साथ रहे, इसकी जानकारी भी वहाँ सुलभ है- ग्राम निकट निकसहिं जन जाई । देखहिं दरसु नारि नर धाई । होहिं सनाथ जनम फल पाई । फिरहिं दुखित मनु संग पठाई ! वस । इतना हुआ नहीं कि- बिदा किए बटुः विनय करि फिरे पाइ मन काम | उधर तो 'घटु' मार्ग दिखा अथवा अतिथि को 'जलाशय' तक पहुँचा 'आश्रम' को लौट पड़े और इधर- उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम । हमारे मित्र कहते हैं कि वस इतने ही समय में राम राजापुर' पहुंच गए और इसलिए पहुँच गए कि वही तुलसी का जन्म स्थान जो है। हो, पर तुलसी के इस राम का वाल्मीकि का शिष्य इस रूप में वहाँ जाना संभव नहीं । कारण कि यदि ऐसा करना ही होता तो सखा निपादराज की कृपा से उनके साथ जल-मार्ग से राजापुर तक बड़ी सरलता से पहुँच जाते। परंतु उन्होंने ऐसा किया नहीं और भरद्वाज मुनि के आश्रम से सीधा धन का मार्ग लिया। राम चाहते क्या थे ? निरा वन-वास अथवा वन में किसी का वासा वा श्राश्रम ? सो हमारी समझ में राम का लक्ष्य था अभी 'वाल्मीकि' का दर्शन करना और इसी हेतु प्रयाग में प्रश्न उठा था- केहि मग नाहीं। उधर से जो समाधान हुआ उसमें राम के परम रूप का संकेत यो ही नहीं किया गया। नहीं, उसमें भी उसी भापा में कह दिया