पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३४

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तुलसी का जन्मस्थान गया कि इसका ध्यान हम लोगों को भी है। आप से कार्य तो हमी लोगों को फराना है फिर आपको इसकी चिंता क्या ? होना निश्चित है । उसे घस कर भर देना है। निदान अपनी सीमा तक. घटु पहुँचा कर लौट पड़े और फिर वाल्मीकि का घटु अपनी सीमा में स्वागत करने के हेतु निश्चित स्थान पर पहुँच गया। इसी से तो तुलसी की स्पष्ट उक्ति है- फबि अलपित गति वेषु विरागी । जी। इसी के साथ ही इसी से इतना और भी- मन मम वचन राम भनुरागी। और टुक ध्यान तो दीजिए । कवि की वाणी है चलते-चलते प्रकरण के अंत में- तत्र रघुवीर अमित सिय जानी । देखि निकट बटु सीतल पानी। तहँ बसि फंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई । देखत बन सर सेल मुहाए । बालमीकि पाश्रम प्रमुबाए । भूलिए नहीं, इसी के ठीक पहले तुलसी का ही योग है- अजहुँ जानु उर सपनेहु फाऊ । बगहुँ लखनु सिय राम बाक। राम धाम पय पाहि सोई। जो पयु पाव का मुनि का। अधिक क्या ? मुनि को सूचना मिली और- मुन्धि मुंदर भाभा निरखि हरये राजिव नेन । की स्थिति हुई नहीं कि- सुनि रघुबर मागमनु मुनि भागे भारत सेन ॥१४॥ भाव यह कि इस प्रसंग में कही 'राजापुर' को स्थान नहीं। इससे उसका कोई लगाव नहीं । यह यमुना-पार-यात्रा सो काही प्रयाग के पास ही हुई है। कहाँ हुई है? भावावेदा का कारण हमारा प्रतिपाय नहीं, फिर भीसंकेत के रूप में कहा जा सकता है कि जहाँ यात्मीर