पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३५

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१२४ तुलसी की जीवन-भूमि के राम की हुई है। जहाँ राम की होती आई है, और फिर जहाँ उनके पश्चात् भरत तथा जनक की हुई है। तुलसी का वही परंपरागत मार्ग है। कहा और कुछ समझ कर कहा गया है- अयोध्या से यमुना जी पहुँचने तक गोस्वामी जी कहीं भी इस प्रकार भावावेश में नहीं आए जिस प्रकार यमुना जी के पार करने पर आए। इसी प्रदेश में राजापुर है और जन्मभूमि के अनुराग से ही गोस्वामी जी ने ग्रामवासी श्री-पुरुष आदि का मार्मिक और अत्यंत प्रभावशाली वर्णन अपनी भलौकिक अनुभूति से इसी प्रदेश से संबंधित किया है। [वीणा, वैशाख सं० १९६५, पृष्ठ ५५१] किंतु समझने में भूल भी पक्की हुई है। उसमें भ्रांति का मसाला जो है। कौन नहीं जानता कि 'शृंगवेरपुर' तक के राम कुछ और ही राम हैं। रथ पर जमे हुए राम पर हृदय की वर्षा कैसी ? हाँ, रथ से हटे नहीं कि- राम लखन सिग्र रूप निहारी । कहहिं सप्रेम ,ग्राम नर नारी। ते पितु मात फहहु सखि कैसे । जिन्ह पठए धन वालफ ऐसे । एफ फहहिं भलं भूपति कीन्हा । लोयन लाहु हमहि विधि दीन्हा.। तब निषादपति उर अनुमाना | तरु सिंसुपा मनोहर जाना। 'निपादपति' के विदा होने पर रामं आगे बढ़े तो 'कवि अल- पित गति' को भाव जगा और उस भाव-साधना का प्रकाश हुआ जिसकी आभा में 'राम धाम पथ' आप ही जन्मभूमि फी कल्पना झलक उठा। भाव की इस प्रवणता का कारणं है कारुणिक मुनि' का करुण प्रसार। वाल्मीकि मुनि के क्षेत्र में पहुँचे नहीं कि भारती क करुण कंठा .