पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी की जन्म भूमि 'घरजाय' का अर्थ आप को 'तुलसी शब्दसागर' में नहीं मिलेगा। कारण को मीमांसा में कौन 'घरनायड का मर्म' पड़े। हाँ, इतना निश्चित है कि उसका संपादन हुआ है डा० माताप्रसाद गुप्त जी की देखरेख में । सो उनको इसमें कुछ अड्चन नहीं प्रतीत हुई। अन्यथा इसका अर्थ कुछ अवश्य दिया गया होता। हाँ, 'अनुपर' का अर्थ उसमें अवश्य दिया गया है- दाम सेवक सो अब इसके सहारे इतना और समझ लीजिए कि- सो प्रसंग मुने अंग र अनुचर को में कुछ विशेष कहा गया है। कह तो दीजिए कि तुलसी की यह जलन कैसी ? कहते हैं- धानर विभीषन की ओर फनाव है। और 'तुलसी की ओर' के ? कुछ न पूछिए । यही तो जलन का कारण है । और इसी से तो आगे चल कर अंत में खुल कर कह जाते है। फीजे राम बार यहि मेरी भोर चखोर । कारण यह कि 'लोकवाद' सदा से यह रहा है कि पहले 'घर' की सुधि लेते हैं और फिर 'वाहर' की । 'घर में दीया जला कर तब मसजिद में दीया जलाते हैं, ऐसा लोकवाद है। 'घर से पैर और से नाता' को 'लोक' ठीक नहीं समझता । तुलसी का यहाँ यही पक्ष है । 'वेद' अथवा 'भक्ति' के नाते तो 'तुलसी' और 'वानर विभीषन' में कोई भेद नहीं, परंतु 'लोक' का नाता इनका कुछ और ही है। वानर-विभीपन कहाँ के क्या ठहरे, किंतु तुलसी का नाता तो स्पष्ट है । वह निरा 'अनुचर' ही नहीं अपि तु 'घरजाया'