पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१४७

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तुलसी का जन्मस्थान भागे दई चलाइ वस्तु भरि दुइ जलनाना । सह समाज चढ़ि चले करत रघुपति गुन गाना । से लख को एक ग्राम रामपुर नाम है ताको । रोफि आगमनी नाव अटालो है यह कोको। अब बिन जगाति नहिं छूटि है, कयौ बहुत तिन मान नहि । जम जाति कुजाति जगाति के, काहू की जेहि कानि नहि ॥१॥ असवारी की नाव जबै पहुँची तेहि ठाऊँ। साधन हू बहु कयौ बतायौ जद्यपि नाऊँ। ताहू पर नहि मान . तबै तिन पूछ गोसाँई । कहा ग्राम को नाम कौन भुइधर यहि ठाँई। को हृदै राम को ग्राम यह, नाम रामपुर बिस्व भन । छत्री जाति तन तदपि है रामदास मम नाम जन !! २ ॥ तब निज मन अनुमान किय, अब ऐसे सुभ ठौर । आवै वस्तु जो काम तौ, हमहि न चाहिय और ॥१॥ 'वस्तु अनेक अमोल अति, अरु बहु निनिस सुदेस. । सब छाडै ज्यौ मेट किय, साध नरेस धनेस ॥२॥ [वही, पृष्ठ १०७] वस्तुतः हम जानना चाहते हैं कि सचमुच यह 'अवध सनबंध' क्या है और क्या है यह 'वस्तु भावना भवन भरि' भी। कारण, हम तुलसी के जन्म-स्थान की खोज में हैं न ? सो तुलसी के सौभाग्य से एक ऐसा भी स्थान अयोध्या में आज भी विद्यमान है जिसको लोग 'तुलसीचौरा' कहते हैं। इसी तुलसीचौरा के संबंध में किसी मोहन सांई का एक गीत है- तुलसी चौरा