पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१४९

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तुलसी का जन्मस्थान लगी जन इकतीसी राम नौमी, गुशाई जी ने कलम उठाई। उछाह से राम व्याह तेतिस, ::

:: : समाप्ति तिथि-मानसी सुहाई।

हुई जो पूजा की धूम सुरगन, ने : रामगाथा ये .. थी वढाई । सुदिव्य मनि तीन शुचि अलौकिक, ..: सुघरता जिनकी कही न जाई । खीचा था उनमें समेत परिकर के रामजी का शबीह औरा ॥ ४ ॥ अवध की भूमी... थी.एक पर विष्णु जी की. झाँकी व दूसरे पर थी राम सी की । व तीसरे पर अनुजं हुनुमत विराजती । मूर्ति सीय पी की । उन्ही की पूजा वहाँ पै होती चलाई मानों' गुशाई जी की । बना दिया मिरजा मानसिंह ने फरश ज़मुरंद व छत्रि ही की। बहुत दिनों तक चहल-पहल थी पलट गया फिर समय का दौरा ॥५॥ अवध की भूमी.. चढ़ा था शैतान सूत्रा के सिर कि ताजपोशी की की: तयारी । उपाट कर फर्स तख्त साजा ...दुखा के दिल भी रुला के झारी ।