पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१५०

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तुलसी की जीवन-भूमि वह तख्त पर बैठने न पाया, पहुँच के नौरंग ने जान मारी । मुगल के घर रल फर्श छत्री गुनाह बेलज्ज़त उसने चक्खा । किए का फल हाथों हाथ धारी। मुगल के घर रल फर्श छत्री पहुँच गए दिल्लियाँ पिथौरा ।। ६॥ अवध की भूमी... रहा सहा वृक्ष वेदिका युत जो था ही जिन्दा गवाह सब का । बचा न वह भी बचे तो कैसे कि हिल गए जब कि सातों तबका। वह कैसा संवत् था वेवफा का कि नाम बारह खवास रन का। वो जन्म त्रेता का कैसे माने, फि छयकरी तिथि हमन को जॅचका। अब ईंट की वेदिका बची है, उसी पैसिर हम पटकते धौरा ॥७॥ अवध की भूमी... ए पाक बट मैं तो खाके तन हूँ, बहुत ही नापाक नजसे दामन । मगर तुम्हारे ही साये में तो हुआ है मेरा हमेशः पालन । इसी से छूने का हक है हासिल, 'छिमा करो पितृदेव भंगवन् ।