पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१५२

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तुलसी का जन्मस्थान एक दिन रहि तह कीन्ह पयानो वट साखानि विनहरि आनो । पलुहै लाग सो वृक्ष, सुपासा, अल्यकाल बढि लाग . अकासा । प्रीति पेखि दुख दूर पराने, मिटे ताप. परिताप पराने । बट वढि भो विस्तार अति, छाया विसद गभीर । श्रुति भज्ञा तेहि तर अजहु, होत रहस की भीर ।।.६ ॥ [चरित्रं, पृष्ठ १०५-६] आशय यह कि 'मोहन साई' के उक्त गीत में जो 'वट' का उल्लेख हो गया है उसकी भी एक परंपरा है और परंपरा है एक 'रामविवाह' दिन की भी। अतएव उनसे अलग रह कर देखा जाय तो सब से विलक्षण दिखाई देगा इसमें 'छत्री का प्रसंग 'मिरजा मानसिंह ने किसकी 'छतरी' बनवा दी ? तुलसी की 'छतरी तो वह हो नहीं सकती। कारण कि तुलसी की अन्त्येष्टि- क्रिया काशी में हुई थी न ? और तब मिरजा मानसिंह जीवित कहाँ थे जो किसी की छतरी बनवाते ? तो फिर छतरी वह थी किसकी ? तुलसी के माता-पिता की हो सकती है। अथवा किसी मन्दिर की ही मान लें, पर किसी भी दशा में यह तो विचार करना ही होगा कि वास्तव में इसका महत्त्व क्या जो यहीं योगिराज का आसन जमा और यहीं तुलसी को कुछ मंत्र मिला । हमारी मति में तो रह रह कर यही आता है कि हो न हो यही तुलसी का जन्म-स्थान हो । अन्यथा हो क्या सकता है ?