पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१६

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वेद मत सोधि,सोधि बोध के पुरान सबै, संत, औ असंतन को भेद को बतावतो? कपटी कुराही कूर कलि के कुचाली जीव, कौन राम नाम हूँ की चरचा चलावतो ? 'वेनी' कवि कहै मानो मानो हो प्रतीति यह, पाहन हिये में कौन प्रेम उमगावतो? भारी भवसागर उतारतो कवन पार ? जो पै यह रामायण तुलसी न गावतो ।। X X X रहु रे कलंकी कलि कपटी कुचाली मूढ़ ! भागु भागु नातो गहि पटकि पछारोंगो। तुलसी गुसांई जू के काव्य के किला सौ काढ़ि, दोहरा दुनाली सी बंदूकन सो मारोंगो । कवि 'अंबादच' सोरठा के सैफ साफ करि छंदन के छर्रा सों गरब गहि गारोंगो। चारु चउपाइन के चोखे चोखे चाकू लेइ, आजु तोहि टूक टूक काटि काटि डारोंगो । X मन अनुमानै हेरि मंजुता मनोहर को, लखि मधुराई. होत ध्यान अस ही को है,। कोमलता परखि विचार मति ऐसो फर, देखि जन प्रियता जनात यह जी को है। 'हरिऔध' निरखि निपट निकलंकताई, कहत हरेक नीतिमान अवनी को है । X