पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१६०

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तुलसी की जन्म-देशा तनु जन्यो कुटिल फीट ज्यों तज्यो मातु पिता हूँ। अंथवा सं० १६६६ की प्रति के अनुसार- तनुज तक कुटिल कीट ज्यो . तज्यो मातु पिता हूँ। पाठ.को पकड़ से भी मर्म नहीं खुलता । डा०. माताप्रसाद गुप्त जी स्यात् इस पाठ के नाते श्री राम- कुटिल फीट नरेश त्रिपाठी के इस अर्थ से सहमत नहीं। त्रिपाठी जी का पक्ष है- सोरों और उसके आस पास 'कुटीला' नाम का एक कीड़ा होता है, जो 'केकड़ा' नाम से विख्यात है। उसकी यह विशेषता कही जाती है कि वह अपनी माता का पेट फाड़कर बाहर निकलता । तुलसीदास के उत्पन्न होते ही उनकी माता का देहान्त हो गया था। इसी से उन्होंने अपनी तुलना 'कुटिल कीट' अर्थात् 'कुटीला' से की है। 'कुटिल कीट' का अर्थ विनय-पत्रिका के टीकाकारों ने सर्पिणी आदि किया है। पर सर्पिणी आदि कोई: जीव अपने बच्चे को जन्मते ही छोड़ नहीं देते। वे प्रकृतिवश उनकी तब तक संभाल करते हुए पाए जाते हैं, जब तक बच्चे स्वयं समर्थ नहीं हो जाते । माता की मृत्यु के बाद ही, संभवतः थोड़े ही दिनों में, उनके पिता का भी देहान्त हो गया था। ऊपर के उदाहरण में पिता के साथ लगा हुआ हूँ. इसी. अर्थ का घोतक हो सकता है । [ तुलसीदास और उनकी कविता, पहला भाग पृष्ठ ६ ] सोरों का कुटीला? ही यदि तुलसी को इष्ट था वो 'कीट' का व्यवहार ही व्यर्थ है । अतएव. उसका आग्रह छोड़ इसका अर्थ लगाना चाहिए । 'विच्छू के विषय में भी, कहावत है- केरा बिच्छी वाँस । अपने जनमले नास ।