पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी की जन्म-दशा

.

तुम्हरो सब भाँति, तुम्हारिय सौं, तुम्ह ही बलि ही मोको ठाहरु हेरे । बैरष बाँह बसाइए पै, तुलसी-घर व्याध अजामिल- खेरे MERA [कविता०, उत्तर०] ..: भाव यह कि तुलसी का अब अपना घरवार नहीं। राम की छाया में रहने को कहीं भी रह सकते हैं, किंतु अंत में रहना चाहते हैं राम के धाम में ही। कारण यह कि 'व्याध' और 'अजा- मिल' का 'खेड़ा' वहीं है। 'वैरष याँह बसाइए पै' में 'पै .पर ध्यान दीजिए और फिर 'जीजै न ठाउँ, न आपन गाउँ' की वेदना को समझिए । अरे तुलसी का अपना गाँव कहाँ ? तुलसीदास के 'घर' के संबंध में अभी अभी जो कुछ कहा गया उसके महत्त्व के विषय घोलना व्यर्थ है। प्रश्न आस्था और विश्वास का नहीं, शोध और अनुसंधान जन्म-तिथि का है। अतः विवेक की खरी कसौटी पर' . : उसे कसा ही जायगा। हम यहाँ जो कुछ कहना चाहते हैं वह यह है कि इससे स्यात् तुलसीदास की जन्म-तिथि का बोध भी ठिकाने से हो जाता है। हम अपनी ओर से क्यों कहें ? :कहना डा० माताप्रसाद गुप्त जी का ही है। सुनिए- ५. श्री शिवसिंह सेंगर ने लिखा है कि- यह महाराज सं०.१५८३ के लगभग उत्पन्न हुए थे। [.'सरोज' पृष्ठ ४१७] बहुधा यह समझा जाता है कि हमारे कवि के संबंध में जो कुछ सेंगर जी ने लिखा है वह उस 'गोसाई-चरित्र के आधार पर लिखा है जिसका उल्लेख उन्होंने स्वतः हमारे कवि की सूचना में किया है। पर उपर्युक्त कथन में लगभग' शब्द स्पष्ट ही इस कथन. का निराकरण कर देता है। यदि उन्होंने उस चरित के आधार पर यह तिथि. दो होती,