पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१७

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X X जैसोई रुचिर चारु चरित सियापति को, तैसोई कलित कल काव्य तुलसी को है। X अब लौं सब नेम धर्म संजम सिराय जाते, माता पिता बालक को वेद न पढ़ावते । आमिप महारौं विभचारी होते भारी लोग, कोऊ रघुनाथ जू की चरचा न चलावते । छूटि जाते नेम धर्म आश्रम के चारो चर्न, ऐसे कलिकाल में कराल दुख पावते । होते सब कुचाली सो सुचाली भने 'महारान', जो पै कवि तुलसीदास भापा न बनायते ।। X उपमा अनेक धुनि भाव रस उक्ति जुकि, छंद औ प्रबंध सनबंध सिख देस काल । ज्ञान योग भक्ति अनुराग औ चिराग बिन, नीति परतीति प्रीति रीति भीति जगजाल। लोक गति वेद गति चित्र गति पर गति ईस गति जति राम रति तति सति हाल । तुलसी जू एते गायो रामायन 'रघुराज', बरबस कीन्हो निज बस दसरथ लाल ॥ . X X यह खानि चतुष्फल की सुखदानि अनूपम मानि हिये हुलसी । पुनि संतन के मन मॅगन को अति मंजुल माल लसी तुलसी । पुनि भानुष के तरिके कहँ 'तोप' भई भवसागर के पुल सी I सत्र कामन दायफ कामदुहा सम रामकथा वरनी तुलसी ॥