पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१७१

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तुलसी की जीवन-भूमि इसका अर्थ बहुत कुछ समझा जा सकता है। निवेदन है कि इसको समझने का प्रयत्न किया जाय और देखा जाय कि स्वयं चाचा जी तो अवध-वास में ऐसा नहीं करते थे। संभव है किसी दिन इसका भी उद्घाटन हो जाय । अभी जान रखने की बात यह है कि- रामचंद्र जी के पुराने मंदिर में थोड़ा ही हेर फेर हुआ है। मसजिद में जो मध्य का गुम्बज है वह प्राचीन मंदिर ही का मालूम होता हैं और बहुत से स्तम्भ भी अभी ज्यों के त्यों खते हैं। ये सुदृढ़ काले कसौटी के पत्थर के बने हुए हैं। खम्मे सात से आठ फुट तक ऊँचे हैं, और नीचे चौकोर हैं और मध्य में अठकोने । [अयोध्या का इतिहास, पृष्ठ ४६-५० ] अस्तु । हमारा निवेदन है कि तुलसी के 'वधावनो वजायो सुनि भयो परिताप पाप' का संबंध इस तुलसी का जन्म-देश 'मसजिद' से है । तुलसी के 'जननी जनक' का निवास इसी के पास कहीं था तो इसमें संदेह क्या ? स्मरण रहे तुलसी का एक पद है- . गरैगी जीह जो कहीं और को हौ। जानकी-जीवन ! जनम जनम जग ज्यायो तिहारेहि कौर को हौं । तीन लोक तिहुँ कालं न देखत सुहृद राघरे जोर को हौं। तुम्ह सौ कपट करि कलप कलप कृमि है हौं नरफ घोर को हौं । कहा भयो जो मन मिलि फलिकालहिं कियो भौंतुवा भौर को हौं । तुलसिदास सीतल नित यहि बल बड़े ठेकाने ठौर को हौं ।।२२९|| [विनयपत्रिका ]