पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१७२

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तुलसी की जन्म-दशा

अतएव हमारा पक्ष है कि तुलसी का ठोरठिकाना 'रामकोट'

किंवा राम का जन्म स्थान ही है। उनके माता-पिता दरिद्र अथवा 'मंगन' थे, इसका प्रमाण पाना कठिन है। तुलसी का कुल कुल मंगन' का अर्थ 'ब्राह्मण कुल' ही है न कि भिखारी कुल'। 'भिखारी' का 'कुल' नहीं हुआ करता । उसका 'भेप' और घर' हुआ करता है। 'चाहए' का महत्त्व तो देखिए ! कवि स्वयं कहता है- भागीरथी जलपान करौं भर नाम द्वै राम के लेत नितै हौं । मोको न लेनो न देनो फछ्, कलि ! भूलि न रावरी भोर चितै हौं । जानिकै जोर करौ परिनाम, तुम्है पछितैहो पै मैं न मितेहौं । ब्राझन ज्यों उगिल्यो उरगारि हाँ त्यों ही तिहारे हिये न हितैहौं।।१०।। [फविता०, उत्तर०] तो भी प्रतिपाद्य विषय हमारा और ही है। हम अध्ययन के आधार पर इतना निवेदन करना चाहते हैं कि हमारी दृष्टि में तुलसी को तजने में न तो अभुक्तमूल का द्विजद्रोही हाथ है और न किसी देव वा दरिद्रता का । उसमें तो स्पष्ट ही हाथ है 'कराल कलिकाल भूमिपाल' अथवा 'राजलोक' का । छिपाने की बात नहीं । इसी से खुली घोपणा है। 'महामुनि' तुलसी की- द्विजद्रोहिहि न सुनाइल फवहूँ | सुरपति सरिस होइ नृप जबहूँ। राम कथा के तेइ. अधिकारी । जिन्ह के सतसंगति अति प्यारी। गुर पद प्रीति नीति रत जेई । द्विज सेवक अधिकारी तेई । [रामचरितमानस, अंत] कारण की मीमांसा में आप पड़ें। तुलसी का निश्चय सामने है, किंतु उनका जीवन आँख से ओझल । द्विजद्रोही शासन से