पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१७६

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तुलसी की जन्म-दशा १७३ 'पावर' तक जो वर्षरता गोचर हुई शेरशाह के शासन में उसका नाम नहीं रहा । शासित को सचमुच शासक मिला और प्रजा ने शेरशाह में अपने राजा का साक्षात्कार किया। इतिहास कहता है- शेरशाह एक योग्य सेनानायक तथा साम्राज्य-निर्माता ही न था, यह एक कुशल शासक भी था। पिछले अध्याय में हम देख चुके हैं कि दिल्ली सुलतानों ने केवल सैनिक बल पर राज्य किया। सड़ी हुई हिन्दू शासन-प्यवस्था पर उन्होंने बलपूर्वक अपना फौजी शासन थोप दिया । उन्होंने अपने तथा अपने वंश के हितों का ही ध्यान रखा, प्रजा के हितों की उन्होंने बिलकुल परवा नहीं की। शेरशाह पहला मुसल- मान शासक था जिसने प्रजा की भलाई को अपने शासन की आधार- शिला बनाया और एक आधुनिक ढंग की सुव्यवस्थित शासन-व्यवस्था की नींव डाली जिसको उसके प्रतिद्वन्द्वी मुगलों ने अपनाया और अधि- कांश भारत को एक हद शासनसूत्र में बाँध कर देश की आर्थिक, तथा सांस्कृतिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया | मि० कोनी लिखते हैं- किसी भी सरकार ने, मिटिश सरकार ने भी, इतनी बुद्धिमत्ता का परिचय नहीं दिया जितना इस पठान ने। इसलिये यदि हम यह कहें कि भारतीय इतिहास का आधुनिक युग शेरशाह के शासन काल से आरंभ होता है तो इसमें अतिशयोक्ति न होगी।' [ मध्यकालीन भारत का इतिहास, पृ० १३६-७] शेरशाह तथा उसके वंश के साथ हिंदू-हृदय का इतना मेल हो गया कि 'सूर' वंश का अंत होते होते भारत का एक बनियां 'विक्रमादित्य' बनकर दिल्ली के गगन में चमका । उसका अंत जिस मुगली निर्म- मता से हुआ उसका उल्लेख आवश्यक नहीं | समझने के लिए इतना पर्याप्त है कि-