पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१७९

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१७६ तुलसी की जीवन-भूमि डा० ईश्वरीप्रसाद के इस कथन से इतना तो विदित ही है कि शेरशाह हिंदू के प्रति इतना उदार था कि वह अपना धर्म-धंधा ठिकाने से कर सके। ऐसी स्थिति में अयोध्या रामबोला में रामभक्तों का फिर से जमाव होना स्वाभाविक ही है। 'जन्म-स्थान' 'स्थान' के रूप में अपनी महिमा वनाए था। लोग दर्शनार्थ अब भी वहाँ जाते ही होंगे और भंदिर' के अभाव में 'स्थान' की पूजा कर लौट आते रहे होंगे, किंतु साथ ही किसी हनुमान गढ़ी की महिमा पहले से कहीं और बढ़ गई होगी जिससे तुलसी का संबंध 'राम- किंकर' के रूप में जुट गया होगा और 'अनाथ' तुलसी 'सनाथ' वन कर 'रामबोला' के रूप में ख्यात हो गया होगा। 'तुलसी' के मूल नाम का पता नहीं पर इतना प्रकट है कि उनका एक नाम 'रामबोला' भी था। इसी से आप का अत्यंत स्फुट कथन 1 राम को गुलाम, नाम रामबोला राख्यो राम, काम यहै नाम द्वै हौं कबहुँ फहत हौं [विनयपत्रिका, पद ७६] तुलसी की जन्म-दशा को देखते हुए उनके 'नामकरण' की चिंता व्यर्थ है। हाँ, स्मरण रखने की बात है कि घोर संकट के समय तुलसी जो 'हनुमान' की शरण लेते हैं उसका रहस्य है उनसे इनका यह संबंध ही- टूकनि को घरघर डोलत कंगाल बोलि, बाल ज्यों कृपालं नतंपाल पालि पोसो है कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर, आपनो त्रिसारिहें न मेरे हूँ भरोसो है ।