पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१८

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तुलसी की जीवन-भूमि १-श्री गोसांई-चरित्र का महत्त्व गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन के अध्ययन में हम इतने अंधे रहे हैं कि हमने उस चरित्र के मर्म पर ही अबतक कोई ध्यान नहीं दिया जिसे हम तुलसी-चरित की आँख उपोद्घात का अंजन कह सकते हैं। और यदि हममें से किसीखोजी की दृष्टि उधर गई भी तो उसको बस इतना भर उसमें दिखाई दिया कि हम उसे घावा बेनीमाधव दास' के 'गोसाई चरित' के साथ देख सकें। रही कुछ उसके सहारे आगे बढ़ने की बात । सो उसके विषय में उसका संक्षिप्त निवेदन है- ११-प्रश्न अब यह है कि इस जीवन-चरित्र को कहाँ तक प्रामाणिक माना जा सकता है । जब हम इस चरित्र को पढ़ते हैं तो देखते हैं कि यद्यपि इसमें कवि के समकालीन अनेक ऐतिहासिक व्यकियों और उनसे संबंध रखनेवाली घटनाओं का उल्लेख होता है, परंतु उन व्यक्तियों के संबंध में और उनले संबंध रखनेवाली घटनाओं के संबंध में हमें वह आवश्यक विस्तार नहीं मिलता है जिसकी सहा. यता से उनकी ऐतिहासिकता की जाँच की जा सके। और, तिथियाँ तो हमें चरित्र भर में नहीं दिखलाई पड़ती। ऐसी अवस्था में यह 'गोसाई-