पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी की जीवन-यात्रा १८१ हो जाती है कि गोसाई जी का व्याह नहीं हुआ था, वह बालब्रह्म- चारी थे। [विनय पत्रिका, सटीक; पृष्ठ ११७-१८ ] अस्तु । एक ओर कुछ लोगों की धारणा यह है तो- पत्नी दूसरी ओर डा० माताप्रसाद गुप्त का पक्ष ४७. ऐसा प्रतीत होता है कि तुलसीदास ने विवाहित जीवन व्यतीत किया था, क्योंकि यदि वस्तुस्थिति इसके विपरीत होती तो 'दोहावली' में संकलित इस दोहे का कोई अवसर न उपस्थित होता: खरिया खरी कपूर संब उचित न पिय तिय त्याग ! कै खरिया मोहिं मेलि कै विमल विवेक बिराग ||२५५|| और न 'विनय-पत्रिका' में तुलसीदाल के निम्नलिखित कथन आते: (क) जोवन ज्वर जुवती कुपथ्य करि भयो त्रिदोष भरे मदन वाय ॥ ८३ ।। (ख) सखा न सुसेवफ न सुतिय न प्रभु आप माय बाप तुलसी साँची कहत ॥ २५६ ॥ 'बाहुक' के निम्नलिखित छंद से भी कदाचित् इस बात का समर्थन होता है-चाल्यावस्था में राम-लम्मुख होने के उपरान्त कवि के 'लोक रीति' में पढ़ने का अभिप्राय यही ज्ञात होता है: बालपने सूघे मन राम सनमुख गयो राम नाम लेत माँगि खात टूक टाक हौं । पस्यो लोफ रीति में पुनीत प्रीति राम राय मोहवस बैठो तोरि तरफ तराक हौं 1 खोटे खोटे आचरनं आचरंत अपनायो अंजनीकुमार सोध्यो राम पानि पाक हौं । .