पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१८५

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। १८२. तुलसी की जीवन-भूमि तुलसी गोसाई भयो भोडे दिन भूलि गयो ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ॥ ४०॥ १८. कहा जाता है कि वैराग्य के पूर्व वे अपनी पत्नी पर अत्यधिक आसक्त थे और रामभक्ति की ओर उनको अग्रसर करने की उत्तरदायिनी उनकी यह पत्नी ही थी। परंतु स्वयं कवि अथवा उनके किसी सम- कालीन व्यक्ति ने इसका उल्लेख नहीं किया है। यह अवश्य है कि मौखिक परंपरा इस संबंध में व्यापक तथा एक रूप रही है । प्रियादास ने माल' के तुलसीदास विषयक ठप्पय की टीका का आरंभ करते हुए इसी कथा का उल्लेख किया है। [ तुलसीदास, ४० सं०, पृष्ठ १७५ ] तुलसी के चरितलेखकों ने जहाँ पत्नी की फटकार को इतना महत्त्व दिया है वहीं कुछ लोगों ने उसकी उपेक्षा भी की है। और श्री रामनरेश त्रिपाठी जी तो कुछ और ही राग सुनाते हैं। सुनिए उनका पक्ष है- तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी प्रसिद्ध है । 'हुलसी' उनकी माता का नाम था, इसके लिए लोग कुछ प्रमाण भी देते हैं। अकवर के प्रसिद्ध वजीर अब्दुर्रहीम खानखाना से तुलसीदास की मित्रता थी, एक बार एक गरीच ब्राह्मण की कन्या के विवाह में कुछ सहायता देने के लिए तुलसीदास ने रहीम के पास यह आधा दोहा लिख कर उसी माह्मण हाथ भेजा- सुरतिय नरतिय नागतिय, अस चाहत सब कोय । रहीम ने ब्राह्मण को बहुत कुछ धन देकर और दोहे की यह पूर्ति करके उसे तुलसीदास के पास वापस भेजा-- गोद लिए हुलसी फ़िरें, तुलसी से सुत होय । माता