पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१८८

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तुलसी की जीवन-यात्रा १८५ प्रकार संभव नहीं कि माता हुलसी की गोद को देखकर कहा जाय कि वह पुत्र तुलसी के समान हो । 'तुलसी' 'गोद' का नाम नहीं । हाँ, उसके आदर्श का नाम अवश्य है। हुलसी फिर तुलसी की माता कहाँ ? पत्नी के रूप में अपनी 'गोद' से भले ही वह कामना कर ले कि वह तुलसी के अनुरूप बने । 'छिष्ट कल्पना के सहारे यदि ऐसा अर्थ करना चाहें कि चाहने को तो सभी स्त्रियाँ, चाहे वे किसी भी योनि की क्यों न हों, यही चाहती हैं कि उनके पुत्र का नाम जगे। परंतु कामना यदि पूरी हुई तो माता 'हुलसी की ही। वही 'गोद लिए' फिर रही हैं। अतः हो तो तुलसी के समान ही 'सुत' हो । कारण यह कि वैसा न हुआ तो जननी को सुख कहाँ ? किंतु यह न तो प्रसंग के अनुकूल है और न 'तुलसी' के अनुसार । हाँ, एक किंवदंती का पोषण अवश्य है। परंतु यदि 'हुलसी' को 'तुलसी' की पत्नी कहा जाय तो इसकी संगति भी ठीक से बैठ जाय और पत्नी की भावना भी आप ही मुखर हो उठे। तुलसी का पुत्र तुलसी के अनुरूप ही बने । किंतु वस्तुतः इस दोहे में 'हुलसी' संज्ञा नहीं, 'विशेपण' है । कह देने भर से, विवेक के अभाव में, यह जनश्रुति चल पड़ी है। सचाई से इसका संबंध नहीं। . तुलसी-रहीम-दोहे का उक्त प्रमाण भले ही मान्य न हो, किंतु क्या किया जाय 'तुलसी' की उस 'हुलसी' को जो 'रामचरित- मानस' में विराजमान है किसी और ही मानस का प्रमाण 'तुलसी' के साथ । कवि किस हुलास से 'रामकथा' के विषय में लिखता है- "बुध विश्राम सकल जन रंजनि । रामकथा कलि कलुष विभंजनि । रामकथा फलि फामद गाई । सुजन सनीवनि मूरि सुहाई ।