पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१८९

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. १८६ तुलसी की जीवन-भूमि सोइ वसुधातल सुधा तरंगिनि । भयभंजनि भ्रम भेक भुभंगिनि। असुर सेन सम नरक निकंदिनि । साधु विबुध कुल हित गिरिनंदिनि । संत समाज पयोधि रमा ‘सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी। जमगन मुह मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी.। अब तक कुछ दूर की बात रही। इसके बाद अब घर को स्थिति सामने आई तो कहा गया- रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी । तुलसिदास हित हिय हुलसी सी । सिव प्रिय मेकल सैल सुता सी । सफल सिद्धि सुख संपति रासी । सद्गुन सुर गन अंत्र अदिति सी। रघुवर भगति प्रेम परिमिति सी। अधिक क्या .सब का सार यह कि- रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु । तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर विहार ॥३१॥ [रामचरितमानस, प्रथम सोपान ] जी। विवाद उठा है इसमें तुलसिदास हित हिय हुलसी सी को लेकर । सो, कोई ऐसा कारण नहीं कि हम 'हुलसी' को प्राणी न समझे १ समझ से काम लेकर लोगों ने इसे प्राणी समझा और प्रायः जनश्रुति के कारण कह दिया 'हुलसी' को 'तुलसी' की माता । किंतु 'माता' का प्रकरण अभी है कहाँ ? उसका स्पष्ट उल्लेख तो है- सदगुन 'सुर गन अंब अदिति सी में न? साहस तो नहीं होता, पर कहे विना कार्य सघता भी नहीं तुलसीस दिखाई देता कि कवि की दृष्टि में 'तुलसी' का स्थान कुछ और ही है । आगे के 'तुलसीस' पर ध्यान तो दें-