पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१९७

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तुलसी की जीवन-भूमि ने इस मठ में न्याय सिद्धांत मंजरी' की एक प्रतिलिपि की थी। ज्ञात होता है कि वे इसी मठ के थे। उक्त हस्तलिखित प्रति अब इंडिया आफिस लाइनरी में है, और उसकी पुष्पिका इस प्रकार है : 'सं० १७९७ वैशाप सुदी पूर्णिमा लिखितम् लोलार्क तुलसीदास मठे जयकृष्णदास शुभम् ।' ७७. महाकवि के समकालीन केशवदास जी की की हुई मठाधीशों की तीव्र निंदा से हम परिचित हैं। अतः हमें इस बात पर आश्चर्य न करना चाहिए कि तुलसीदास ने 'गोसाई' हो जाने पर पश्चात्ताप प्रकट किया और इसी को फोड़ों का मूल कारण भी बताया । यह हमारा दुर्भाग्य है कि अब हमें लोलार्क कुंड पर के मठ के विषय में कुछ विशेष ज्ञात नहीं। [वही पृष्ठ १६०] परंतु विचारणीय तो यह है कि क्या कहीं गोस्वामी जी ने भी ऐसा कटु कार्य किया है और क्या कभी गोसाई' मठाधीश' का प्रतीक बना है। यह तो उस समय का गोसाई एक आदरणीय शब्द है न ? स्वयं तुलसी- दास भी तो आप ही कह देते हैं- नीच यहि बीच पति पाइ. भरुआइगो बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को। तो.फिर पति पाइ' का महत्त्व क्या ? उस समय आप की दृष्टि में 'गोसाई की प्रतिष्ठा नहीं और यहाँ 'पति पाइ' का स्पष्ट उल्लेख है। इतना ही नहीं। साथ ही यह भी विदित ही है कि तुलसी की भाषा में यह काम हुआ है- बिहाय प्रभु भजन वचन मन काय को ।