पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१९८

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तुलसी की जीवन-यात्रा १६५ तो क्या कोई 'मठाधीश' ऐसा कर सकता है ? हमारी समझ में तो यह किसी मठाधीश के लिए संभव नहीं कि सारी परंपरा को धो डाले और मन से, बचन से, और शरीर से चाहे जो करे । नहीं, यह तो सभी प्रकार से संभव है 'लोकरीति' में पड़ने अथवा विवाह कर लेने पर ही। साथ ही यह भी स्मरण रहे कि 'मठा- धीश' को प्रायः 'महंत' कहते हैं कुछ गुसाई नहीं । फिर 'तुलसी- दास मट' का अर्थ यह कैसे समझा जाय कि वह मठ जिसकी मटपना तुलसीदास ने की ? कहने का तात्पर्य यह कि 'फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को' का कारण गोसाईपन नहीं, महती नहीं । हाँ रामविमुख होजाना अवश्य है। जी । 'लोकरीति' में तुलसी पढ़े फिर उससे मुक्त हो साधना में लगे । नाम जगा तो अपने को कुछ लगाने लगे। 'राम' का स्थान में को मिला तो राम का नमक सब की दृष्टि में प्रगट हो गया और तुलसी को अपने किए का भोग मिला। हमारी समझ में तो सीधी सी बात यह आती है कि तुलसी का निवास स्थान ही आगे चलकर कभी 'तुलसी मठ' कर दिया गया हो तो इसमें आश्चर्य नहीं, पर इसी से यह निष्कर्ष निकालना कि तुलसीदास कभी 'मठाधीश' थे साहस का काम अवश्य है। 'गोसांई का यह अर्थ नहीं । हाँ, विलसन के कथना- नुसार तुलसी ने 'मठ की स्थापना मंदिर के पास ही अवश्य की, परंतु यह तो उनके मित्र 'टोडर' का कार्य कहा जाता है न ? तो गोसाई भयो' का अर्थ मठाधीश हुआ' हो जाने से तुलसी की दुर्गति सिद्ध हुई तो हो ले । हमें उसके बारे में विशेष कुछ कहना नहीं। किंतु इतना तो हम भली भाँति जानते ही हैं कि स्वयं तुलसी की वाणी है- चेरो राम राय को सुजस सुनि तेरो, हर ! पाइँ तर आइ रह्या सुरसरि तीर हो ।