पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२०

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श्री गोसाई-चरित्र का महत्त्व ३ ये आ गये | काय द्वारा कथित छंदों से स्पष्ट होता है कि जहाँगीर का विरोध उसने कई यार किया था। जहाँगीर के क्रूरता के कई उदाहरण इतिहास के पृष्टों में मिलते हैं। जहाँगीर निरपराध व्यक्तियों को भी प्राणदंद दे डालने में संकोच नहीं करता था । वह अपने मनोरंजन के लिए मनुष्यों को हाथी और शेर से लड़वाया करता था। 'तुजुक जहाँ- गोरी' में इस प्रकार की घटनाओं के उल्लेख आये हैं । उस काल में प्राणदंड पाये हुए व्यक्तियों को मस्त हाथी के संमुख छोड़ दिया जाता था और हाथी उन्हें पकड़ कर चीर डालता था | यह रीति केवल जहाँगीर के शासन-काल ही में न थी वरन् अधिकांश मुगल शासकों द्वारा मृत्यु-दंद का यही ढंग था। इतना नहीं अपितु उसी क्रम में- कवि की रचनाओं से पता चलता है कि वह आरंभिक अवस्था में सलीम के भनुमूल था। उसने राज्यसिंहासनस्थ जहाँगीर तथा युव- राज सलीम (जहाँगीर ) दोनों की प्रशंसा की है। अकबर के राजस्व- काल में ही कवि सलीम की ओर झुक गया था- हाथी चाहै साल बन साँप चाहै माथै मनि पानी को प्रवाह जैसे चाहे बेली पान की। संजोगिनी रैन चाहे जोगी जैसे जोग चाहै आतुर नायक चाहै जैसे नित मान की। दहि चकोर चाहे पिक घनघोर चाहै चफई चकोर जैसे चाहै भेट भान की। हंस चाहै मानसर , भोर चाहै :मेव झर गंग चाहै नजर सलेम सुलतान की।