पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२०१

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. 1 १६८ तुलसी की जीवन-भूमि वैरागी - साधना की उक्त अवस्थाओं से तुलसी का कितना लगाव रहा, इसको व्यक्त कर देने का कोई उपाय नहीं। उपलब्ध सामग्री के आधार पर इतना अतीत अवश्य कहा जा सकता है कि कभी 'अतीत' के विषय में तुलसी का कहना था- अति सीतल अति ही अमल, सकल कामनाहीन ! तुलसी ताहि अतीत गनि, वृचि सांति लयलीन ॥४८॥ [वैराग्य-संदीपिनी ] क्यों ? क्यों तुलसी को अपनी इस बाल-रचना में 'अतीत' की व्याख्या करनी पड़ी ? और कह लें, पूरबी सिद्धांत पर दोहा- चौपाई की शैली में संत-गुनगान करना पड़ा ? समाधान स्यात् यही संभव है कि तुलसी 'अवध' के वैरागी थे।. सगुण रामानंदी थे। कारण कुछ भी हो 'अतीत' का यह प्रयोग विचारणीय है और साथ ही यह मननीय भी कि 'अतीत' 'गोसाई' भी कहा जाता है। अब यदि चाहें तो इसकी छाया में यह सरलता से कह सकते हैं कि, हो न हो, 'तुलसी गोसांई भयो' के बाद ही विवाह किया 'तुलसी' वा रामबोला' ने। अस्तु, यह तो कहा नहीं जा सकता कि गृहस्थी जमाने के लिए गृहस्थ माता-पिता ने तुलसी का विधिवत् पाणिग्रहण संस्कार कराया । हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि 'प्रीतिपुरातन' के प्रताप से यह सहज ही संपन्न हो गया । कहाँ इसका सूत्रपात हुआ ? जिज्ञासा प्रवल है तो समाधान भी मूक नहीं । तुलसी का विनय है:- विवाह