पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२०३

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२०० तुलसी की जीवन-भूमि फरम धरम सम फल रघुबर विनु राख को सो होम है, असर कैसो बरिसो।। थादि अंत बीच भलो, भला करै सत्र ही को जाको जस लोक वेद रह्यो है बगरि सो। सीतापति सारिखो न साहिव सील-निधान, कैसे कल पर सठ वैठो सो विसरि सो.॥ जीव को जीवन-प्रान, प्रान को परम हित प्रीतम पुनीत कृत नीचन निदरि सो । तुलसी तोको कृपालु जो कियो कोसलपाल चित्रकूट को चरित्र चेतु चित करि सो ॥२६४|| [विनयपत्रिका] गोस्वामी तुलसीदास जी ने चलते-चलते जो कुछ कह दिया उसको जान लेना खेल नहीं। 'चित्रकूट चित्रकूट को चरित्र को चरित्र' का पता क्या ? विनयपत्रिका के टीकाकार श्री वियोगी हरि जी इसको इस रूप में प्रकट करते हैं- (५) चित्रकूट को चरित'---एक दिन चित्रकूट में गोसाई तुलसीदास जी को घोड़ों पर चढ़े हुए दो अपूर्व सुन्दर राजकुमार दिखाई दिए । वे एक मृग के पीछे धोढ़ा दौड़ाते हुए जा रहे थे। गोसाई जी कुछ ध्यानावस्थित से थे । ध्यान में विघ्न पड़ने की आशंका से उन्होंने अपने नेत्रों को बन्द करके भूमि की ओर कर लिया। कुछ देर बाद हनुमान जी ने दर्शन देकर उनसे कहा कि क्यों श्रीराम लक्ष्मण के दर्शन मिले या नहीं ? जो दो राजकुमार अभी घोड़े पर चढ़े इधर से गए हैं, वही रामचन्द्र और लक्ष्मण हैं। गोसाई जी पछताने लगे। बोले-