पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी की जीवन-भूमि अकबर की मृत्यु पश्चात् सलीम जहाँगीर के माम से सिंहासना- रूढ़ हुआ । इस समय कवि के जहाँगीर की प्रशंसा में कहे हुए छंदों से स्पष्ट होता है कि वह अपने जीवन का अंतिम जहाँगीर समय जहाँगीर · की छाछाया में व्यतीत कर रहा था । बहुत काल तफ वहाँगीर की दृष्टि कधि की ओर कृपापूर्ण रही थी। इसका आभास कवि-रचित महाँगीर की प्रशंसा के छंदों से लग जाता है- दलहिं चलत हलहलत भूमि जल थल जिमि चलदल । पल पल खल खल भलत विकल वाला फर कुल फल ॥ जिव पट्टहिं ध्वनि युद्ध धुधु धुधुव धुधुव हुन ! अरर अरर फटि दरकि गिरत धस मसति धुनि ध्रुव ।। भनि गंग प्रवल महि चलत दल जहाँगीर तुव भार तल । एं फु फरिद फुफरत सहस गाल उगिलत गरल || उक्त छंद में जहाँगीर की सेना के आतंक का भी कवि ने वर्णन कर दिया है। [अकबरी दरवार के हिंदी कवि, पृष्ठ १२५-६] डा० सरयूप्रसाद अग्रवाल के इस विवेचन के सामने क्या डा० माताप्रसाद गुप्त का उक्त मत्त क्षण भर भी ठहर सकता है ? तो भी स्थिति अभी मुँह खोलने को खड़ी है और उसी की चिंता में उक्त डा० अग्रवाल का यह अनुसंधान है- जव खुर्रम को आश्विन सुदी १३, संवत् १६७४ में शाहजहाँ की उपाधि मिली तो दरवार के कई प्रतिभाशाली व्यक्ति उसकी भोर माकृष्ट हो गये क्योंकि जहाँगीर अपने र स्वभाव और विलासप्रियता के कारण अधिकांश लोगों का घृणापात्र बन चुका था। राजनीतिक मामलों में वह नूरजहाँ के हाथों की कठपुतली होने के कारण उचित न्याय करने में असमर्थ रहता था । लोरा नये युवराज से सुंदरतर शासन की माशा