पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२११

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तुलनी गी जीवन भूमि मुमन गुविनिन-गमगुलनिकाल गल अनगाल उर आजमान | श्रमत आमोदधर मतमधुफर-निष्टर गपुरतर मुखर यन्ति गानं ॥ गुभग श्रीवत्स केयूर कंगन बार हिथिनी - रनि पटिनट रसालं। घाम दिसि जनजामीन - विभागानं गम - गृहलियत पसगालं ।। भाजानुभुजदंद, फोटंग मंडित याम या दलिग पानि मानमेकं । अखिल मुनिनिफर गुरमित गंधर्व यर नमरा नर नाग अवनिा धन ॥ अगम अपिकिस वंश संग म मसग दातासमा । प्रगतजन - गोदविछेद - विद्या - निपुन गौगि श्रीराम समिनि-सा ॥ युगल पदपन मुखसा पद्मालयं, निल कुलिमादि सोमातिमारी। हनुमंत दिविमल त परममंदिर गदा दामनुलसी सरन-सोफहारी ॥५१॥ [विनयपनिका] जी। तुलसीदास ने 'परममंदिर' का उल्लेम्स तो कर दिया, किंतु कहीं प्रत्यक्ष मंदिर का पता नहीं दिया। वो पया इससे यह निष्कर्ष नहीं निफलता कि वस्तुतः इस मंदिर' बिंदुमायय का वहाँ उस समय सर्वथा लोप ही था ? कारण कि बही तुलसीदास आगे चलकर इसी प्रसंग में फिर लिखते हैं- सफलनुसफंद आनंदवन - पुण्यकृत बिंदुमाधर द्वंद्व - विपति-हारी। यस्यांनिपाथोज अन शंभु सनकादि मुफ शेष मुनि, अलि निलयकारी। अमलमरफत श्याम, फाम-सतफोटि-छवि, पीतपट तटित व जलदनीलम् । अरुणशतपत्र-लोचन, क्लिोफनिचार, प्रणतजन-मुखद, फरुणाशीलम् ।। फालसाजराज-मृगराज, दनुजेश चन-दहन-पायफ, मोह-निशि-दिनेशम् । चारिभुज चक्र कौमोदकी जलज दर सरसिजोपरि यथा राजहंसम् ॥ मुकुट कुंदल तिलक, अलक अलि-बात इव, भृकुटि द्विज अवरवर चारु नासा। रुचिर सुकपोल, दर ग्रीव मुख सीव, हरि, इंदुफर-कुंदमिव मधुरहासा ।।