पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२१२

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तुलसी की जीवन-यात्रा २०९ उरसि धनमाल सुविशाल, नव मंजरी भ्राज श्रीवत्स-लांछन, उदारम् । परम ब्रह्मण्य, अति धन्य, गतमन्यु, अज, अमितबल त्रिपुल महिमा अपारम् ।। हार केयूर, कर कनक-कंकण, रतनजटित मणि मखला कटि प्रदेशम् । युगल पद नूपुरा सुखर कलहंसवत, सुभग सर्वांग, सौंदर्यवेषम् ।। सकल सौभाग्य-संयुक्त त्रैलोक्यश्री, दक्षदिशि रुचिर वारीशकन्या । बसत विबुधापगा निकट तट सदन बर, नयन निरखंति नर तेऽतिधन्या ।। अखिल-मंगल भवन, निविड़-संशय-शमन, दमन ब्रजिनाटवी कष्टहता । विश्वधृत विश्वहित अजित गोतीत शिव विश्वपालन-हरण, विश्वकर्ता ।। ज्ञान-विज्ञान-त्रैराग्य-ऐश्वर्य-निधि, सिद्ध अणिमादि दे भूरि दानम् । असित-भवव्याल अतित्रास तुलसीदास प्राहि श्रीराम उरगारियानम् ॥६शाः [विनयपत्रिका 'विंदुमाधव' के इस प्रत्यक्ष मंदिर को देख कर तुलसी धन्य होते और किस उल्लास में कह जाते हैं- असत विबुधापमा निकट तट सदन बर, नयन निरखंति नर तेऽतिधन्या। परंतु है कहीं तुलसी-साहित्य में 'सरयू तट सदन बर' का विधान भी ? भूलिए नहीं, 'मानस' में तुलसीदास लिखते हैं- जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं । तीरथ सफल तहाँ चलि आवहिं ।। असुर नाग वग नर मुनि देवा ! आइ फरहिं रघुनायक सेवा । जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना । करहिं राम कल कीरति गाना । मज्जहिं सजन वृदः बहु पावन सरजू नीर । जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर ॥ ३४ ॥ [रामचरितमानस, प्रथम सोपान ] कदाचित् अब कहने की आवश्यकता नहीं रही कि तुलसी- मानस-निर्माण में बाबरी-मसजिद' वा जन्म-स्थान. 'जन्म-स्थान' का विशेष योग रहा है। स्थिति को भलीभाँति हृदयंगम करने के ?