पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२१३

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२२० तुलसी की जीवन-भूमि लिए गठिया लेना होगा कि भवानीदास ने एक प्रसंग का उल्लेख किया है इस रूप में- दछिन को एक नृपति पुजारी ।.अति नेष्ठिफ बहु प्रतिमा धारी। श्री रघुनाथ कृपा तेहि कीन्ही । निज सरूप हित अज्ञा दीन्ही । मम प्रतिमा अवधहि पहुँचायो । जन्म अस्थान आसोन करावो । ले अशा पालकी चढाई । सुभट द्रव्य बहु लोग पठाई। वृंदावन पहुँचे. आई । लियो वास जमुना तट जाई । विन एक दरसन हित आयौ । लखि सरूप बहु भांति लोभायौ । तीनि दिवस वासा भयौ । बिन न छाँडै पास | खान पान विसराइ निनु । विफल प्रेम प्रभु मास ।। जन वत्सल करना कर स्वामी । प्रेम विवस दासन अनुगामी । सत्य प्रीति दिन के प्रभु चीन्ही । निज पंडन को अज्ञा दीन्दी । .अब.मोहि पाहि विन घर राखौ । बार बार प्रभु तिन तेभाखौ। रामघाट तब: मंदिर साजे । सुभग सिंगासन राम विराजे । कियो निहाल विप्रः निज दासा । रामघाट दिज ग्रह करि बासा । श्रम फरि दछिन ते चले, अवध जन्म अस्थान। वृंदावन दिज अह रहे, ऐसे कृपानिधान ।। जाना सो प्रहलाद गज, भीषमादि कपि भाल | रुचि बिहाइ निज दास रुचि, राखत दीनदयाल । जब ते लीला बान धनु, करी कृष्ण भगवान । निज उपासना कहैं लघु, सबन गँवायो मान ।। तब-ते सब मिलि लज्जित रहै । इरखा भाव हृदय निजु गहै । तिनहि कृपा करि बोलि पठायौ । प्रभु प्रभाव सबहिन समुझायो । अमित प्रभाव सर्वगत स्वामी । अवसि दरस बसि अंतरजामी । जेहि जस भाव ताहि तस मानो। एक प्रभाव बस्य जन जानो। . म