पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२१९

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२१६ तुलसी की जीवन-भूमि भयो वाद दंढी विफल, दंढी रंदी सोग । पापंढी हरि पद बिमुख, खंदी धर्म नियोग | पहुचायो तिन याद फो, ताही भौति निदान : ताही छिन सत्र देस मह, भयो हुकुम मुलतान || देस देस अशा दई, बन सहरन माहि । फंटी माला छोडि के, भरि भरि गाडिन जाहि ।। फोउ माला कर आपने, देहिन पर सो माथ। फोऊ आपने सी किये, फाह सिर के साथ ।। [चरित्र, पृष्ट ४४-५] कारण की सत्यता से क्या करना ? स्थिति के परीक्षण में फंठी-माला-निपेध श्री भवानीशंकर याज्ञिक जी की साखी है- कंठी-माला-धारण के निषेध-संबंधी विश्यस्त ऐतिहासिक प्रमाण खोज निकालने की भरपूर चेष्टा की, परंतु सफलता नहीं मिली । नाभा जी ने भी एक भक्त की कथा में इसफा उल्लेख किया है। वल्लम- संप्रदाय के इतिहास में जहाँगीर-द्वारा इस प्रकार की आज्ञा निकाली जाने और गोस्वामी गोकुलनाथजी द्वारा उस आज्ञा का विरोध करने का वर्णन 'माला-प्रसंग के नाम से अवश्य मिलता है। इस प्रकार की आज्ञा निकाल देने की बात वैष्णव-समुदाय में सच्ची मानी जाती है, यद्यपि इतिहास-ग्रंथ इस संबंध में मौन हैं। कंठी-माला के लिए गोस्वामी गोकुलनाथ जी ने जो सफल प्रयास किया वह उनके जीवन की एक मुख्य घटना मानी जाती है। संक्षेप में माला-प्रसंग की घटना इस प्रकार कही जाती है कि जहाँगीर बादशाह ने चिद्रूप (जदरूप अथवा जहरूप) संन्यासी कहने से कंठी-माला-धारण के विरोध में एक आदेश निकाल दिया। इसका घोर विरोध होना स्वाभाविक था। गोस्वामी गोकुलनाथ जी ने . .