पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२२

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श्री गोसाई-चरित्र का महत्त्व कर रहे थे । मतः वे अकारण ही. शाहजहाँ की प्रशंसा करने लगे। गंग ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने युवराज शाहजहाँ की प्रशंसा इस कारण की थी- नाउ लिए घर से निकस्यो कवि गंग कहै साहजान तिहारो। भाइके देख्यों है कल्पतरू अरु कामदुधा मनि चिंतति भारो। आज हमारी भई परिपूरन आस सबै कनहूँ नहिं वारो । लोभ गयो सिगरो चित ते अब ये गयो दारिद छेदन वारो ॥ दरबारी व्यक्तियों की इस प्रवृत्ति का आभास नूरजहाँ को भी मिला । शाहजहाँ के पोपक व्यक्तियों से वह स्वार्थवश शत्रुभाधना रखने लगी यधपि स्पष्ट रूप से भभी वह उनका नूरजहाँ प्रतिकार करना उचित नहीं समझती थी। गंग की भी नूरनहाँ के प्रति कोई विशेष प्रज्ञा ज्ञात नहीं होती क्योंकि नूरजहाँ की प्रशंसा में उसका रचा एक भी छंद नहीं मिलता है। राज्य की साम्राज्ञी की प्रशंसा उसी के दरवार का करिन करे यह एक प्रकार का अपराध ही था। किंतु कवि के जीवन का दुःख- मय समय तो तय आया लय नूरजहाँ के एक संबंधी जैनों ने कवि गंग के इकनौर गांव के जुनारदारों पर आक्रमण किया तथा क्रूर भाव से उनका विध्वंस किया। इस परिस्थिति ने कचि के हृदय में चिप्लव की भावना उत्पना कर दी। यात उचित ही थी-जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । कदि ने निर्भीकता से राज्य के इस कर कार्य की कटु आलोचना की। [वही पृष्ठ १२७] अधिक से लाभ क्या ? डा. अग्रवाल के विवेचन का निष्कर्ष निकला- इस प्रकार स्वयं कवि के छेदों तथा अन्य परवर्ती कवियों की उत्तियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैनखाँ ने इमनौर के प्राह्मणों को