पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२२०

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तुलसी कीजीवन-यात्रा ७० वर्ष की वृद्धावस्था में काश्मीरयात्रा कर जहाँगीर से भेंट की और इस आज्ञा को हटवा दिया। जहाँगीर ने चिद्रूप संन्यासी से प्रथम बार भेंट उज्जैन में माघ शुक्ल पूर्णिमा सं० १६७३ को की थी। मथुरा की मेंट आश्विन शुक्ल दशामी सं० १६७६ को हुई थी। चिद्रूप से अकवर ने भी एक बार भेंट की थी और ये दाराशिकोह के भी मिन्न थे । जहाँ- गीर ने चिप संन्यासी की प्रशंसा अपनी दिनचर्या की पुस्तक 'तुजुक- जहाँगीरी' में विस्तारपूर्वक की है । चिप संन्यासी का कुँवर ध्यानसिंह- द्वारा चित्रित सत्रहवीं शताब्दी का एक प्राचीन चित्र श्री कन्नोमल जी ने 'सुधा' नामक पत्रिका ( वर्ष १, खंड २, संख्या ३, पृ० ३२५-२६) में छपवाया था और मुंशी देवीप्रसाद जी मुंसिफ ने 'श्री शारदा' (वर्ष १, संख्या २, पृ० १०२-१०५) में चिद्रुप संन्यासी संबंधी एक लेख छपवाया था । कंठीमाला-धारण करने के निषेध में चिद्रूप का हाथ था या नहीं यह सिद्ध करना कठिन है । 'माला-प्रसंग के संबंध में श्री हरिराय नी ने गोस्वामी गोकुलनाथ जी की प्रशंसा में यह कहा है- जयति विठ्ठल-सुवन, प्रगट लभ वली, प्रबल पन फरि तिलक-माल राखी । इस घटना से संबंध रखनेवाले हमें एक प्रसिद्ध कवि के १९ छंद खोज में मिले हैं। कंठी-माला-निषेध की प्रामाणिकता सिद्ध करने के हेतु केवल दो चार छंद यहाँ दिए जाते हैं। प्रसिद्ध कवि' रहीम, जहाँ- गीर आदि के समकालीन थे और इनके रचित रहीम की प्रशंसा के छंद मिलते हैं। अस्तु- जती के हुकुम ते लगाई न रतीक वेर, हुकुम. हजूर ही ते साहि के फितै भए । दूर करौं माल, ततकाल टीके भालन ते ते विकराल दौरि हहदी गए। काल' हूँ