पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२२४

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तुलसी की जीवन-यात्रा २२१ 4 अति ही अभागो अनुरागत न रामपद, मूढ़ एतो बड़ो अचरज देखि सुनी सो ७२।। [कवितावली, उत्तर०] नाभादास की गवाही तो है ही। उस समय का भक्त ही नहीं अपितु श्रीमधुसूदन जैसा ब्रह्मज्ञानी भी कह गया है किस उल्लासमयी देवभाषा में- आनन्दकानने ह्यस्मिञ्जङ्गमस्तुलसीतः। कवितामञ्जरी यस्य रामभ्रमरभूषिता ।। फिर सचमुच 'एतो बडो अचरज' का मर्म पाना कठिन नहीं। तुलसी की दृष्टि में राममय जीवन से क्या नहीं हो सकता। किस दृढ़ता का दिव्य उद्गार है- घर घर माँगे एक पुनि, भूपनि पूजे पाय । से तुलसी तब राम विनु, ते अत्र राम सहाय ॥१०॥ [ दोहावली ] पता नहीं पर, प्रसिद्ध है कि कभी किसी बादशाह से तुलसी को 'कारावास' भी मिला था। कारावास कोई एक स्त्री हुती सो संती हौंन कौं जात थी। ताने मारग मैं तुलसीदास जू सौं दंडौत करी, तब इन कयो सौभाग्यवती होहु । यह कहत ही वाको पति जीय उख्यो । यह बात सुनि पातसाह जहांगीर तुलसीदास जू सौं बुलाय कही, कछु करामात दिखावो । तव इन कही, हम करामात तो कछू जानें नहीं, तब इनकी कैद करि राखे । ता समैं राजा अनीराय बड़गूजर तुलसीदास जू के पास आए। चीनती कीनी जु महाराज ऐसो कीजिये हिंदवन के मारग की घटती न दीसैं, अरु आगें तें कोई वैष्णवन की संतावै नहीं। ता पर इननि एक - नथो पद