पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२२६

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! तुलसी की जीवन-यात्रा २२३ के कृपापात्र थे। विद्रोही खुसरो उनके निरीक्षण में था। उनको मुंगल' के घर-घाट का पूरा पता था। तभी तो आकर चावा तुलसीदास को सहेन गए कि इसका परिणाम कुछ और ही होने को है । घात कुछ भी रही हो । तुलसी का कथन है- वेद पुरान बिहाइ सुपंथ कुमारग कोटि कुचाल चली है। काल कराल, नृपाल कृपाल न, राजसमाज बड़ोई छली है बर्न-विभाग न आत्रम-धर्म, दुनी दुख-दोष-दरिद्र-दली है। स्वारथ को परमारथ को कलि राम को नाम-प्रताप चली है ।।८।। [कवितावली, उत्तर०] राम नाम' से तुलसी ने जो काम लिया उसका डंका विश्व सती में पंज चुका है। प्रसंगवश निवेदन यह किया जाता है कि 'सती' के प्रसंग का तुलसी का एक दोहा है- सीस उघारन फिन कहेड, वरजि रहे प्रिय लोग। घर ही सती कहावती, जरती नाह - वियोग ||२५४॥ [ दोहावली] अजब नहीं कि इस शाही बुलावे के पीछे कोई 'सती' कांड हो। अभी हम इतना ही कहना अलं समझते हैं कि तुलसीदास को कभी यह राजदड मिला अवश्य । अन्यथा इसका इतना व्यापक उल्लेख संभव न था। भवानीदास का कथन और भी विचारणीय है। चित्रकूट में 'बुलावा' का समाचार पहुँचा नहीं कि- 'सुनै जो समाचार सोचे बिचारें | गोसाई इहां ते फहूं नां पधारै । सुनौ राउ रानानि आए'नो ऐसो । न मान हमै जो करें क्यों न कैसो। करै मेदिनी रंड मुंड बिहार । नहीं जान देहै'सो भाज्ञा मिटारै । कही जाइ कै साह जो आप आवै । नही रामदासान को देखि पावै ।