पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२३

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1 तुलसी की जीवन-भूमि मरवाया था और कवि ने उस कृत्य की निंदा खुले रूप में की थी। गंग के ये छंद जब नूरजहाँ के कानों पड़े तो उसके हृदय में प्रतिशोध की भावना जाग्रत हो उठी । फलस्वरूप दरबार के प्रसिद्ध कवि गंग को जहाँगीर ने हाथी से कुचले जाने की आज्ञा दी। [ वही, पृष्ट १२६] डा० माताप्रसाद गुप्त जी के आक्षेप का समाधान तो सभी प्रकार से हो गया और पाठकों ने भली भाँति देख लिया कि वास्तव में उक्त चरित में दोप नहीं दोप वस्तुस्थिति डा. गुप्त जी की दृष्टि में ही है। परंतु हमारा मन इतने से भरा नहीं । हम तो और भी खुल कर बताना चाहते हैं कि वास्तव में वस्तुस्थिति क्या है । सो उक्त चरित्र' का 'कविगंग कवेस्वर प्रसंग' है- इक समै गोसाई जन दयाल | करै नाप लिये कर तुलसि माल || पठि फवित थाइ तिन मेट कीन । कवि गंग फवेवर गर्व लीन । अपमान भजन कर फरी गाय | गज तुलसि माल व घरी हाथ ।। तब कह्यो गोसाई सहन सुभाई असमत हम से मति मानो। हम को अवलंब अधार यही वह हाथी जनं तुम जानो। 11 अपमान हस्तिनापुर सोई गायौ । पातिसाह सो भेटि काव्य कीन्ही फछु लायौं । भाख्यौ कछुक अनोग्य पाठि राज्ञी उर आयो । वेगम फरि अति क्रोध तुरत गज तरे देवायो।। अपमान संत जिन को करयो निंद्या सुमिरन भनन किया। श्रुति संतपाल नहि सह्यो जन बचन लागि फल वैगि दिय ।। [:श्री स्वामी गोसाई तुलसीदास जू को चरित्र, पृ० १२१ ] इमि गुरजन