पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२३२

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तुलसी की जीवन-यात्रा २२४ मीन मन फंद जग लोचक चकोर चंद, पुन्य तरु फंद नाम राम दसरथ को । [चरित्र, पृष्ठ १३०] और इसके पहले कवित्त यह- जेई परपंची तेई पंच करि मानियत, जेई नर खोटो तिने अटो लीजियतु है। जेई हैं चुगुल तेई सुगुल कहाक्त हैं, जेई महा पापी ते प्रतापी कीनियतु है ॥ चोरन वोलाइ सिरोपाउ देत राना राउ साहन पकरि बंदीखाने दीजियतु है। ऐसे हाल देखि कलिकाल के कराल ज्वाल, राम जी तिहारो नाम लै लै जीजियतु है ।। [वही, पृष्ठ १३०] ऐसी दशा में यह ठीक-ठीक समझ नहीं पड़ता कि वस्तुतः वस्तु-स्थिति है क्या ? क्या तुलसी के निधन में कुछ कलिकाल का भी हाथ है जिसे कहने का साहस भवानी- सारांश दास को नहीं है? हो वा न हो, हमें तो आज 'ठाकुर' की इस वाणी का आस्वादन कर उस तुलसी से अमृत लाभ करना है जिसके संबंध में उसी के साथी नाभादास उसी के जीवन में मुक्तकंठ से कह गए- कलि कुटिल जीव निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भए । फिर किसी की कुटिलता की चिन्ता क्या? हाँ, तो 'ठाकुर' कवि की कविता है- वेदमत संमत पुरान अरु शास्त्रन को, प्रेम को विलास इतिहास परसत है ।