पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२३४

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८-तुलसी की खोज तुलसी के अध्ययन की जो धारा यहाँ वही है वह अबतक की बहती हुई धारा के कहाँ तक मेल में है और कहाँ तक फूट कर उससे अलग जा पड़ी है, इसकी मीमांसा उलझन में तो मनीषी मग्न होंगे ही। अभी तो हम उस शोध-धारा पर मुग्ध हैं जिसके परि- रामस्वरूप आज तुलसी की स्थिति है कि- गोस्वामी जी कहाँ प्रकट हुए थे, यह भी सर्व-संमत रूप में नहीं कहा जा सकता। कुछ लोग चित्रकूट के पास हाजीपुर को उनका जन्म- स्थान मानते हैं। झांसीसी विद्वान् तासी और अँगरेज लेखक विलसन ने इस मत का प्रवर्तन किया है। जहाँ तक मुझे ज्ञात है ऐसा कोई स्थान आजम तो है नहीं। संभव है उन्होंने राजापुर को भ्रमवश हाजी- पुर लिख दिया हो । कारण, राजापुर भी चित्रकूट से कोई दस कोस पर हो है । महाप्मा रूपकला जी तथा लाला सीताराम ने तारी में उनका जन्म लेना लिखा है। कहीं कहीं हस्तिनापुर को तुलसी का जन्म-स्थान घतलाया गया है। एटा जिले का सोरों भी उनका जन्म- स्थान कहलाता है। इसके प्रमाण में कुछ पुरानी जनश्रुतियाँ तो हैं ही, मानस के प्रथम सोपान का यह दोहाद भी रखा जाता है- मैं पुनि निज गुरु सन सुनी, फथा सो सूफरखेत । परंतु सूकरखेत से भापा-विज्ञान के अनुसार 'सो' की निरुति नहीं होती और इसके पक्ष में कुछ दिन हुए धीरे धीरे नियमित रूप से प्रकाश में आने वाली जो रचनाएँ वहाँ से प्रकट हुई हैं उनकी प्रामाणिकता