पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२३६

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तुलसी की खोज उल्लेख हुआ था, पहले-पहल सं० १८८८ में 'एशियाटिक रिसर्चेज में (जिल्द १६, पृ०४८) प्रकाशित हुआ था। कवि के जीवन-वृक्ष से संबंध रखनेवाली आपकी सूचना नाभादास जी के छप्पय और उस पर प्रियादास जी की टीका के अतिरिक्त कुछ जनश्रुतियों के आधार पर निर्मित थी । इस सूचना में कवि की जाति, जन्म-स्थान, काशी में कार्य- क्षेत्र, गुरु-परंपरा, जन्म-काल, देहावसान-तिथि और रचनाओं पर कुछ प्रकाश डाला है । तुलसीदास आपके निबंध का मुख्य विषय न होने के कारण यद्यपि हमें यह आशा न करनी चाहिए कि जनश्रुतियों के संग्रह करने में आपने कोई विशेष श्रम किया होगा, फिर भी वे हमारे लिए महत्त्व की हैं, क्योंकि एक तो वे पीछे संकलित की हुई जन-श्रुतियों से कुछ भिन्न हैं, और दूसरे इतनी प्राचीन हैं कि इनसे पहले किसी भी आलोचनात्मक दृष्टि-संपन्न-व्यक्ति द्वारा संकलित की हुई जन-श्रुतियाँ इस समय अप्राप्य हैं। [तुलसीदास, तृ० सं०, पृष्ठ १] हम अपनी ओर से क्यों कहें ? वस्तु-स्थिति के विधान में कहा को छूट क्यों १ श्री विलसन के स्रोत से हम अनभिज्ञ नहीं। हमें पता है कि उस समय के 'हिंदू कालेज' के विलसन का स्रोत पुस्तकाध्यक्ष श्री मथुरानाथ जी तथा काशी- नरेश श्री उदितनारायण सिंह जी के मुंशी सीतल सिंह जी ही श्री विलसन साहब के सामग्रीदाता थे। 'काशी' को चुना और चुना 'काशीनरेश को भी। वात पक्की कही पर काम कच्चा किया। परिणाम सामने है। तुलसी की खोज की पहली ईंट ही टेढ़ी पड़ गई फिर भवन क्या सीधा हो ? कहते हैं स्यात् इन्हीं मुंशी सीतल सिंह जी के प्रमाण पर ही कि तुलसी काशीनरेश के दीवान' थे । कृपा कहिए काशीनरेश की कि कभी उन्होंने ऐसा दावा नहीं किया नहीं तो आज तुलसी की स्थिति ही