पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२३८

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. तुलसी की खोज २३७ डाला गया । परंतु क्या यह 'साहेब विलसन की कलम 'का रहा और उनकी संप्रदाय-शोध को सजग करने में समर्थ न. क्यों कैसे कहा जाय ? अव तो राजापुर' तुलसी का जन्म स्थान जा रहा है। परंतु पता नहीं पहले यहाँ कुछ कर देने की प्रेस- किसी को क्यों नहीं हुई ? क्यों राजापुर का इतिहास आँख खोल कर नहीं पढ़ा जा रहा है और यह नहीं समझा जा रहा है कि विलसन साहब को उक्त सामग्री से लगा ऐसा ही कि तुलसी- दास का जन्म-स्थान जैसे हाजीपुर (राजापुर) हो कुछ यह नहीं कि वस्तुतः उनका जन्म-स्थान हाजीपुर ही है। सो लगता रहे, आज तो राजापुर की लाग कुछ और ही है न ? 'राजापुर' पर अंगरेज की कृपा का कारण है तो प्रत्यक्ष, किंतु तो भी वह आज समय पर ठीक से दिखाई नहीं देता। कौन नहीं जानता कि अँगरेज पानी से घिरा प्राणी है और स्वभावतः स्थल की अपेक्षा जल का धनी है। प्रयाग में उसका पाँव जम गया तो क्या हुआ ? अभी यमुना' पर उसका अखंड प्रभुत्व कहाँ ? उसने देख लिया कि यदि वुदेलखंड पर प्रभुत्व जमाना है तो यमुना को सभी प्रकार से हथिया लेना अनिवार्य । कारण कि उसके विना कार्य सरलता से सच नहीं सकता। निदान यमुना के दक्षिणी तट, भी अपनाए गए और बुदेलखंड पर आक्रमण 'राजापुर' से उतर कर सं० १८६० में किया गया। राजापुर कुछ दिन तक छावनी घना रहा। इसी सत्संग में उन्होंने देखा कि यहाँ तो 'एक पंथ दो' काज' की साधना खुल कर की जा सकती है और मराठों की 'अयोध्या' की माँग का उपाय भी अच्छा किया जा सकता है कि लोकरुचि तुलसी के स्थान पर उलझ जाय और अयोध्या का आकर्पण कुछ राजापुर में ठिठुर कर रह जाय । 1