पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४०

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तुलसी की खोज २३७ जोड़ लिया गया। प्रतीत होता है कि वहाँ नाम 'सूकरखेत' का लिया गया था और कर दिया गया उसे 'सोरों। ऐसा क्यों हुआ ? कौन कहे ? किंतु कहने को वहीं आधार है यह कि- १५-द प्रोलोग टु द रामायण भाव तुलसीदास, स्पेसीमैन दास- लेशन, एफ० एस० पाउस कृत, जर्नल आव एशियाटिक सोसाइटी भाव बंगाल, जिल्द ४५, १८७६ ई० । इसमें लिखा है कि० गो० तुलसीदास ने 'सूकरखेत में शिक्षा पाई है, और यह भी बताया गया है कि 'सूकरखेत' शब्द किस प्रकार 'सोरों' शब्द में परिवर्तित हो गया। [वही, पृष्ठ ५] किंतु कहीं यह भी स्पष्ट कर दिया गया होता कि तुलसीदास को 'सोरों' छोड़ कर क्यों 'राजापुर के जंगल में बसना पड़ा तो स्थिति स्यात् सुलझ जाती, आगे चलकर इसका कारण खोज निकाला गया और कहा गया कि उस पार महेवा में ससुराल होने के कारण तुलसी को यहाँ वसना पड़ा। महेवा से तुलसी का नाता कब और कैसे जुटा, इसका पता नहीं। हाँ, तो सं० १९३३ तक तुलसी की खोज यहाँ तक पहुँच चुकी थी कि भारत में श्री प्रियर्सन साहिब का ग्रियर्सन की देन पदार्पण हुआ और उनकी कलम ने वह काम किया जो किसी की कलम वा करवाल से न हो सका। लीजिए लेखा डा० माताप्रसाद गुप्त जी - ६. यशास्त्री स्वर्गीय सर जार्ज ए. प्रियर्सन की सेवाओं की इस क्षेत्र में तुलना नहीं हो सकती। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आप ने ही हमारे महाकवि के जीवन और रचनाओं के संबंध में पहले-पहल अनुसंधान