पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४१

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२३८ तुलसी की जीवन-भूमि किया, और यह दुःख का विषय है कि उस दृष्टिकोण का परिचय पीछे आने वाले विद्वानों ने नहीं दिया । इस दिशा में आप ने पहला उल्लेख- योग्य प्रयास सं० १९४२ में किया, जब वेन की अंतर्राष्ट्रीय ओरियंटल कांग्रेस के सामने आप ने हिंदुस्तान का मध्यकालीन साहित्य, विशेष रूप से तुलसीदास' विषयक अपना सारगर्भित निबंध पढ़ा। इस लेख में आपने हमारे कवि के जीवन, उसकी कृतियों और विचारों पर पर्याक्ष नया प्रकाश डाला। पीछे सं० १९४६ में प्रकाशित होने वाले अपने 'मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर आँच हिंदोस्तान' नामक ग्रंथ में कवि के विपय में जो सूचना आप ने दी वह बहुत कुछ इसी निबंध का रिप्रिंट है । सं० १९५० में 'इंडियन ऐंटीक्वेरी' में आप के 'नोट्स ऑन तुलसी. दास' प्रकाशित जो इस क्षेत्र में आप की उज्ज्वल कीर्ति के स्तंभ हुए । इन 'नोट्स' का पहला अंश कवि की तिथियों की गणना से संबंध रखता है । गणना परिश्रम-पूर्वक ज्योतिष के मान्य सिद्धान्तों के अनु- सार की गई है। दूसरा भंश कवि की कृतियों से संबंध रखता है। इसमें पहले कवि की कृतियों की प्रामाणिकता पर विचार किया गया है, जिसमें छ: छोटे और छ बड़े ग्रंथों को कवि की रचना माना गया है, और शेष उनकी रचना कहे जाने वाले ग्रंथों को अस्वीकृत किया गया है। इसके अनंतर कृतियों का सविस्तर अलग-अलग परिचय दिया गया है। तीसरे खंड में कवि के जीवन वृत से संबंध रखनेवाली परंपराओं और जनश्रुतियों का संग्रह है। अंत में आपने सुधाकर द्विवेदी जी तथा वाबू रामदीन सिंह के प्रति आभार प्रदर्शित किया है, जिनकी सहायता से आपने यह 'नोट्स' प्रस्तुत किए हैं । इस अन्वेपण की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । अव से कुछ पूर्व तक इतनी वैज्ञानिक रीति से हिंदी के किसी कवि अथवा लेखक के संबंध में अन्वेषण किया गया था, ऐसा मेरे ध्यान में नहीं है। [ तुलसीदास, तृ० सं०, पृष्ठ ३]