पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४२

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तुलसी की खोज २३९ प्रशंसा की अति नहीं तो भी भूलना न होगा कि उसमें कुछ कूट भी है। कारण कि श्री शिवनन्दन कूट का उदय सहाय जी इसी पत्र के 'पृ०५३ की टिप्पणी, को लक्ष्य करके लिखते हैं उसके तीन दोहों के संबंध में- उनमें इनकी माता, पिता, गुरु, पुत्र, पत्री, श्वसुर सब के नाम वर्णित हुम हैं । परंतु वे किस ग्रंथ के या किसके रचे दोहे हैं यह बात आपने नहीं लिखी है। कवि कृत ग्रंथों में तो'चे दोहे अवश्य नहीं देखे जाते । हम उन दोहों को नीचे उद्धृत कर देते हैं- दूवे आत्माराम है, पिता नाम जग जान । माता हुलसी कहत सब, तुलसी के सुन कान || प्रहलाद उधारन नाम है, गुरु का सुनिए साध | प्रगट नाम नहीं कहत जो, कहत होय अपराध ॥ दीनबंधु पाठक कहत, ससुर नाम सब कोइ । रक्षावलि तिय नाम है, सुत तारक गत होइ ।। इन नामों की सत्यता में हम, चाहे कोई अन्य व्यक्ति, शंका करें। किंतु इस बात में सभी सहमत होंगे कि आप की माता निस्सन्देह परम धन्य और पुण्यवती थीं जिनके उदर से ऐसे महान् महात्मा का जन्म हुआ जिनकी रचनाएँ इस अधर्म-परायण समय में भी लाखों मनुष्यों को सदाचारी, जगहितकारी, भक्तिवतधारी बना रही है। [श्री गोस्वामी तुलसीदास, पृष्ठ १२] श्री ग्रियर्सन के कूट रूप से हम अनभिज्ञ नहीं । भाषा के क्षेत्र में उसकी चर्चा हम पर्याप्त कर चुके हैं। यहाँ इतना और भी जान लीजिए कि यही उद्देश्य उनका साहित्य के क्षेत्र में भी है। ध्यान से पदिए और कलेजा थाम कर कह तो दीजिए कि इस 'जग-