पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४३

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२४० तुलसी की जीवन-भूमि जानी बात का पता प्रियर्सन के अतिरिक्त किसको था। किसी भी प्राणी का नाम बता तो दीजिए। जी। यह भी एक ग्रियर्सनी माया है जो इस देश में आज भी फल-फूल रही है। इसको लेकर आज तक तुलसी के जीवन के संबंध में कितने जाल हुए हैं इसे कौन कहे ? अभी तो काम जारी है न ? फिर चिन्ता क्या ? स्मरण है न ? तुलसी गुरु का नाम लेना अपराध समझते हैं और संकेत से 'प्रहलाद उधारन' वता जाते हैं । ठीक ही करते हैं। भला कोई गुरु का नाम लेता है ? भूले-भटके काव्य में 'कृपासिंधु नर रूप हरि' अथवा 'नरहरि प्रगट किए प्रहलादा' आ गया तो कोई बात नहीं। मानस-पाठ में दोष क्या ? किंतु क्या तुलसी के देश में पत्नी का नाम लेना पुण्य था जो उसका उल्लेख हो गया ? अद्भुत ! रहस्य !! तो भी इतना तो मानना ही होगा कि वास्तव में उक्त दोहा- त्रयी का आधार है अध्यात्म । उसके सभी नाम प्रतीकात्मक प्रतीत होते हैं। उनके आध्यात्मिक पक्ष की उपेक्षा जंजाल की बाढ़ कर उनको लौकिक अर्थ में ग्रहण करना प्रपंच को महत्व देना है। फिर भी किया गया ऐसा ही और फिर तो तुलसी के परिवार पर परिवार निक- लने लगे। कागद-कलम की कृपा से सब कुछ सथ गया। किंतु बुद्धि की कमी विवेक के अभाव और ज्ञान की भ्रांति के कारण वहुतों का परदा भी खुलता गया, खुल गया, और जो खुलने से रह गया सो भी प्रतिदिन खुलने की ओर ही बढ़ रहा है। अतः हमें उसकी चिन्ता नहीं। हमारा कहना तो यह है कि अब इस कला से मुक्त हो कुछ तथ्य का पता लेना चाहिए और समझ रखना यह कि तुलसीदास के घर-घाट का पता बताना खेल नहीं।