पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४४

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तुलसी की खोज उनके समय की उनकी जीवनी कभी उपलब्ध होगी, इसमें भी पूरा संदेह है । तो भी व्यापार आज इसी का चल रहा है और न जाने देश के कितने प्राणी इसी धंधे में लीन हैं। तुलसी के खोजियों में वैसे तो एक से एक बढ़कर निष्णात निकले किंतु सच पूछिए तो सचमुच साहस का हाथ दिखाया उनमें से स्व० वाबू इंद्रदेव नारायण जी इंद्रदेवनारायण ने । इतर तो उनके पीछे आए और समु- दाय बना कर भी पीछे ही रह गए। आप के परिचय में इससे अधिक और क्या कहा जाय कि आप 'मानस- भक्त' और सत्संगी थे? इसी नाते तुलसी के विषय में कुछ भी कह जाने का आप को अधिकार था! जीवन रेलगाड़ी के इंजी- नियर की लकी में वीता था। इसी धंधे में कभी बलरामपुर में रहे थे। शेष वार्ता यह है कि- मानस-मयंक का तिलक बापू इन्द्रदेव नारायण रचित मुद्रित है, परंतु दुःख है कि तिलककार से जैसी टीका उसकी होनी चाहिए वैसी नहीं हुई । इसका कारण कि ये मानस गुरु-परंपरागत अर्थ प्राप्त नहीं किया था । सांकेतिक मयंकादि की रचना का यथार्थ अर्थ भावादि नहीं जानने के कारण जैसा समझ में आया वैसा ही अर्थ लिखा। इसी से समालोचकों को मयंकार के ऊपर मालोचना करने का मौका मिला। 'बाबू इन्द्रदेव नारायण और कोदवराम जी एक ही ग्राम के निवासी. थे। इसी कारण उनके मुख से जहाँ तहाँ का अर्थ सुना था तथा श्री रामलाल मिश्र जी बलरामपुर महाराज के कोतवाल, जो पं० जानकी प्रसाद जी के द्वारा मानस का अर्थ भावादि प्राप्त किए थे कुछ उनकी सहायता भी ली और पं० जानकीप्रसाद जी कृत मानस अभिप्राय दीपक