पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४५

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२४२ तुलसी की जीवन-भूमि वालकांड की प्रज्वालिनी टीका के आधार पर अभिप्राय दीपक बालकांड तथा अवधकांड का तिलक कर मुम्बई वेंकटेश्वर प्रेसाध्यक्ष को छापने का अधिकार दिया । उसी प्रेस से छप कर प्रकाशित है। जैसी दशा मयंक के तिलक की है वही दशा दीपक के तिलक की है । तिस पर भी यदि सातो कांडों की टीका रहती तो किसी प्रकार संतोप भी किया जाता । परंतु शेष पाँच कांडों की टीका करने में वे असमर्थ थे। यदि सामर्थ रखते तो दो ही कांड पर तिलक क्यों करते । बहुत दिनों की बात है। केतने सज्जन महाशय (महात्मा बालकराम विनायक, श्री विन्दु ब्रह्मचारी आदि) ने मुझ से आग्रह किया था कि आपको बाबू इन्द्रदेव नारायण से विशेप घनिष्ठता है। उनसे शेष अभिप्राय दीपक पांच कांडों पर तिलक करवाइए नहीं तो पाठक जी की कीर्ति नष्ट हो जायगी । उन पांचों कांटों में से एक दोहा का भी अर्थ निज पांडिस्य शक्ति से कोई नहीं लगा सकता है। १९४० (?) ई० में मेरी कथा केसरिया में हुई जहाँ वावू इन्द्रदेव नारायण का मकान है। उस समय मैंने उनसे दीपक पर तिलक करने के लिए बहुत अनुरोध किया । उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आप संत हैं। आपसे मैं छिपा नहीं सकता। यदि मुझे शक्कि रहती तो दो ही कांड का तिलक कर क्यों छोड़ देता। वह भी दो कांडों का तिलक स्वयं नहीं किया हूँ। बालकांड का तिलक तो 'प्रज्वालिनी' जो विस्तार है उसका सूक्ष्म किया हूँ। हाँ, अयोध्या कांड में कैक विद्वानों के मदद से जेन केन प्रकार से लिख दिया हूँ। शेप कांडों का कुछ भी अर्थ नहीं लगता है। मुझे आशा है कि आप यदि परिश्रम करेंगे तो उत्तम प्रकार से तिलक करेंगे क्योंकि भाप मानस गुरु-परंपरागत व्यास हैं। उसके थोड़े दिनों के पश्चात् बाबू साहिव स्वर्गवासी 1 [श्रीमानस-अभिप्राय-दीपक सटीक, भूमिका, पृष्ठ ३-४ ]