पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२४६

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तुलसी की खोज महात्मा श्री जानकीशरण जी (स्नेहलता) के इस स्पष्टीकरण के पश्चात् कदाचित् उस 'तुलसी-चरित' के विषय में कुछ और कहने की आवश्यकता नहीं रही जो 'महा- तुलसी-चरित भारत से कम नहीं और जिसकी कविता श्रीरामचरित मानस के टक्कर की है। कारण यह कि उसका पता भी केवल इसी वावू इंद्रदेव नारायण जी को है। कुशल कहिए कि उसका प्राकटघ भी अंश मात्र ही हुआ । नहीं तो उसकी छानबीन में ही हिन्दी का सारा भेजा निकल जाता । फिर कोई उसकी परीक्षा क्या करता ? ज्येष्ठ सं० १९६९ की 'मयार्दा धन्य हुई जिसमें इसका अद्भुत प्राकट्य हुआ। प्रतीत होता है वाबू साहब ने बलरामपुर के किसी सरयूपारीण ब्राह्मण का चित्र खींचा है अपनी उक्त विद्या के अनुसार । तो भी इस 'तुलसी-चरित' का इतिहास है बड़ा रोचक । बाबू शिव- नन्दन सहाय जी लिखते हैं- हमें अपने एक मित्र जिला भोजफ्फरपुर नंदवारा ग्राम निवासी बावू नरेन्द्रनारायण सिंह जी से ज्ञात हुआ है कि गोस्वामी जी के जोवनकाल ही में उनके एक चेले ने उनके निषेध करने पर भी उनकी पवद्ध वृहद् जीवनी कोई एक लाख दोहे चौपाइयों में तयार की थी। गोसाई जी ने इसका हाल जान कर लेखक को यह कह कर वैसा करने से निषेध किया कि ईश्वर का गुणानुवाद छोड़ कर मनुष्य का चरित्र लिखना ठीक नहीं, पर उन्होंने उनकी बात न मानी। इस पर कुपित हो कर शाप दे दिया कि उक्त पुस्तक का प्रचार नहीं होगा । वह चेला मनस्ताप से अत्यंत पीड़ित हो श्री नाभा जी या किसी अन्य महापुरुष के शरणापन्न हुआ और उनके आग्रह तथा प्रार्थना से गोस्वामी, जी ने सं०.१९६७ के अंत में शापमोचन का बचन दिया। और यह प्रश्न उठने पर तनेइ कि दिनों तक उस हस्तलिखित पुस्तक की रक्षा कौन - .